ONLY MUSIC

Friday, October 24, 2014

Happy New Year

Nights are Dark but Days are Light, Wish your Life will always be Bright. Wishing You a Happy New Year Saal Mubarak 

MARKAND DAVE.


Tuesday, September 30, 2014

GHAGHARA-CHANIYA-CHOLI NEW FASHIONS.

GHAGHARA-CHANIYA-CHOLI NEW FASHIONS. 
PL. BLESS HER. THANKS A LOT.
MARKAND DAVE.

 https://www.youtube.com/watch?v=nIQnmJ6GFCw&feature=youtu.be



Mail: mikdesigner20@gmail.com



Monday, April 8, 2013

कहाँ खो गया है आदमी ? (गीत)


कहाँ  खो  गया है आदमी ? (गीत)






http://www.youtube.com/watch?v=_oAJUyy9YFM&feature=youtu.be

http://mktvfilms.blogspot.in/2012/09/blog-post_7.html

अरमानों की  लाशें कितनी, ढो  रहा   है  आदमी..!

मायूसी के  भँवर में  कहाँ,  खो  गया  है  आदमी ?

अंतरा-१.

खिलखिलाता  मातम जहाँ, आँसू  बहाती  ख़ुशियाँ..!

मनचाही  सौगात पाकर  भी,  रो  रहा   है   आदमी ?

अरमानों   की   लाशें  कितनी, ढो  रहा   है  आदमी..!

अंतरा-२.

ज़िच राह भटकना  यहाँ,  नित जीना, नित  मरना  है..!

सादगी का  दम  भर  कर, चरम   सो  रहा  है  आदमी..!

अरमानों  की   लाशें      कितनी,  ढो  रहा   है  आदमी..!

(ज़िच  राह= लाचारी  भरी  ज़िंदगी; चरम= अंतिम )

अंतरा-३.

है  शग़ल  का  हाल  खस्ता, महँगा  पानी, खून  सस्ता ?

तभी  तो   आस्तीन,  इलीस   की   धो  रहा   है  आदमी..!

अरमानों  की      लाशें     कितनी,  ढो  रहा   है  आदमी..!

(शग़ल= रोजगारी; खस्ता=ख़राब) 

(इलीस की आस्तीन= शैतान की  लहूलुहान  बाँह)

अंतरा-४.

वसीयत लिखें  फ़ज़ीअत की  तो, क्या  लिखे  ये  आदमी ?

कवल  अवम, अंगी  को  देकर ,खुश  हो  रहा  है  आदमी..!

अरमानों   की    लाशें     कितनी,   ढो   रहा    है  आदमी..!

(फ़ज़ीअत= दुर्दशा ) (अवम= आख़री) (कवल= निवाला) (अंगी=नेताजी-सरकार)

© मार्कण्ड दवे । दिनांकः०७-०९-२०१२.

Tuesday, April 2, 2013

यादों की बारिश..! (गीत)






यादों  की   बारिश..! (गीत)





यादों  की   बारिश   हो    रही   है, पलपल   ऐसे..!

सूखी   नदी  में   हो, झरनों  की   हलचल   जैसे..!


१.


दिल का चमन  शायद, गुलगुल  हो न  हो मगर, 

ख़्वाब   होगें  ज़रूर  गुलज़ार, हो  मलमल  जैसे..!

सूखी   नदी  में   हो, झरनों  की   हलचल   जैसे..!


गुलगुल=मुलायम; गुलज़ार=हराभरा 


२.


दर्द - दरख़्त   बूढ़ा,  सो   गया   है  साहिल   पर,

फिर    जागेगा    वह, जवानी   हो   चंचल   जैसे..!

सूखी   नदी  में   हो, झरनों  की   हलचल   जैसे..!


दरख़्त=पेड़; साहिल = तट


३.



दब    गया   पारा - ए - दिल, घाव  के  संग  तले,

फिर   आयेगा   ऊपर, फाड़  कर   दलदल   जैसे..!

सूखी   नदी  में   हो, झरनों  की   हलचल   जैसे..!


पारा-ए-दिल= दिल का एक टूकड़ा; संग=पत्थर


४.


जमकर  बरसना अय तसव्वर, तुम  क्या जानो,

तरस  गये  हैं  कान, सुनने को  कलकल  कैसे..!

सूखी   नदी  में   हो, झरनों  की   हलचल   जैसे..!


तसव्वर=याद; कलकल=जल के बहने से उत्पन्न मधुर शब्द ।


© मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०१-०४-२०१३.


Friday, March 29, 2013

सरकती रात का आँचल । (गीत)







सरकती रात का आँचल । (गीत)


सरकती रात का, आँचल मैं  थामे  बैठा  हूँ ।

यारों   की  भीड़  में, तन्हाई  थामे  बैठा  हूँ ।


दिदारे यार  को, तरसता रहा, मैं भी, यार भी,

भरी  महफ़िल में  ये,रुसवाई  थामे  बैठा  हूँ ।


अंतरा-१.

आस थी इस शाम को,आयेंगे ना, आये वो..!!

बेवफ़ा, ग़मे  आशिकी,गले लगाए  बैठा  हूँ ।

भरी  महफ़िल में  ये,रुसवाई  थामे  बैठा  हूँ ।

सरकती  रात  का, आँचल  मैं थामे बैठा  हूँ ।

अंतरा-२.

प्यार में अक्सर, कहते थे  वो, मर जायेंगे ..!!

मैं  न  भूला,आज तक,जाँ  लूटाये  बैठा हूँ ।

भरी  महफ़िल में  ये,रुसवाई  थामे  बैठा  हूँ ।

सरकती रात  का, आँचल मैं थामे  बैठा हूँ ।

अंतरा-३.

ना जाने क्यूँ, दामन बचा कर, वो चल दिये..!!

राहें  उनकी, रोशन  रहें, दिल जलाए  बैठा हूँ ।

भरी   महफ़िल  में  ये, रुसवाई  थामे  बैठा  हूँ ।

सरकती  रात  का,  आँचल   मैं  थामे  बैठा हूँ ।

अंतरा-४.

क्या करुं,दिले जलन को,काश ये होता नहीं..!!

मर जाउंगा लो, आज  मैं, जाम थामे  बैठा  हूँ ।

भरी   महफ़िल  में   ये,रुसवाई  थामे  बैठा  हूँ । 

सरकती   रात  का, आँचल  मैं  थामे  बैठा हूँ ।


यारों   की   भीड़   में,   तन्हाई  थामे  बैठा  हूँ ।

सरकती  रात  का, आँचल  मैं  थामे  बैठा हूँ ।

मार्कण्ड दवे । दिनांक-१३-१०-२०११.

Tuesday, March 26, 2013

નયન ઉઠાવો તો થાય સવાર.



સાંજ-સવાર.






નયન  ઉઠાવો તો થાય સવાર ને, નયન ઝુકાવો તો સાંજ..!

પાંપણ   માંહે, મનગમતી   ગઝલ, કલમ  ઉઠાવો તો આજ,

નયન  ઉઠાવો તો થાય સવારને, નયન ઝુકાવો તો સાંજ..!

.........નયન ઝુકાવો તો સાંજ..!

અંતરા-૧.

પ્રબળ આવેગ થઈ પ્રેમ ઝૂરેને, સ્મરણ ઝૂરે દિન-રાત,

દર્પણ  માંહે, અણગમતી રસમ, કવચ ફગાવો તો રાજ.

નયન  ઉઠાવો તો થાય સવારને, નયન ઝુકાવો તો સાંજ,

.........નયન ઝુકાવો તો સાંજ..!

અંતરા-૨.

અધરામૃતના પુર ઉમટે ને, થાય એકરસ ઉભય ઘાટ,

આપણ બંને આકંઠ તરસ્યાં, તરસ  છિપાવો તો રાજ.

નયન  ઉઠાવો તો થાય સવારને, નયન ઝુકાવો તો સાંજ,

.........નયન  ઝુકાવો  તો  સાંજ..!

અંતરા-૩.

દુર-સુદુરના ભેદ ભૂલી વહે, સ્મિત મધુર  દિન-રાત.

રગરગ  માંહે, રસઝરતી છબી, સ્મિત મઢાવો તો રાજ.

નયન  ઉઠાવો તો થાય સવારને, નયન ઝુકાવો તો સાંજ,

.........નયન  ઝુકાવો  તો  સાંજ..!

અંતરા-૪.

રાય ને રંકના ત્યજીને તમાશા, કુપાત્રે ન દઈશ દાન,

તાસક માંહે સળગશે સુરાહી, મયપાન કરાવો તો રાજ. 

નયન  ઉઠાવો તો થાય સવારને, નયન ઝુકાવો તો સાંજ,

પાંપણ માંહે, મનગમતી ગઝલને, કલમ ઉઠાવો તો આજ,

નયન  ઉઠાવો તો થાય સવારને, નયન ઝુકાવો તો સાંજ,

.........નયન  ઝુકાવો  તો  સાંજ..!

© માર્કંડ દવે.તા.૧૪-૦૯-૨૦૧૧.

Saturday, March 23, 2013

પતંગિયું. (ગીત)




પતંગિયું. (ગીત)




ભૂલથી  મેં   એક,  પતંગિયું  પકડ્યું, 

 કોપિત ચમન, આખેઆખું ગરજ્યું..!!

ઝાકળ   ઘસી તેજ  થૈ,  તેગ  શૂળની, 

ભોંકાય   ભીતર,  મન  મારું   કણસ્યું.


અંતરા-૧.

સુવાસ   રીસાઈ,  કુમાશ  ખીજાઈ,

પાંદડી  સુકી  તો,વળી પાછળ પડી,

ભરમાતાં, ડરતાં, રડતાંને સરતાં, 

કુસુમ અશ્રુ જોઈ, ઉર મારું કણસ્યું.

ભૂલથી મેં એક,પતંગિયું  પકડ્યું..!!

અંતરા-૨.

હચમચ્યાં મૂળને, ડાળીઓ તમતમે,

પંજા  ફેલાવી  થોર, મારવા ધસે,

ગર્જન પ્રચંડ,ધમધમાટ રોષ  જોઈ, 

ભય  કેરું  લખલખું, રોમ-રોમ ફરક્યું.

ભૂલથી મેં એક, પતંગિયું  પકડ્યું..!!

અંતરા-૩.

ભમરાઓ  ચટકે, રજપરાગ  ચીખે,

સુણીને  ઘોંઘાટ, સહુ મધમાંખ ધખે, 

ચહુ  કોર  ઘેર્યો,  ડંખ્યો  મને  દંડ્યો,

જાગી  વેદના  તૈં, મન મારું સમજ્યું,   

ભૂલથી  મેં એક, પતંગિયું  પકડ્યું..!!

અંતરા-૪.

ભયભીત થૈ ને, પલ-પલ વિલયતું,

હારી - થાકી અંતે, શાંત થઈ  જાતું,

છૂટવાને   કાજે,  તરફડતું,  ફફડતું,  

કકળાટ  જોઈને,  દિલ મારું  કકળ્યું.

ભૂલથી મેં  એક, પતંગિયું  પકડ્યું..!!

© માર્કંડ દવે. તા.૧૭-૧૦-૨૦૧૧.

Friday, March 22, 2013

काश हम भी मोबाईल होते..! (गीत)


(Google Images)

काश   हम   भी   मोबाईल    होते..! (गीत)



जलते   हैं    भीतर,  काश   हम   भी   मोबाईल    होते..!

उनके   करीब  रह   कर  हम, कितने   वर्सटाईल   होते? 

(versatile=वर्सटाईल= हरफ़न मौला,सर्वगुणसंपन्न)


अंतरा-१.


जब   वो, प्यार से  अपलक  देखते, दिल के  स्क्रीन  को..!

ओ..ह, इस अदा  पर  हम, जहान से  भी  हॉस्टईल  होते..!

जलते     हैं     भीतर,  काश   हम   भी   मोबाईल    होते..!

(अपलक देखना= ताकना; Hostile= हॉस्टाईल = आक्रामक,दुश्मन )


अंतरा-२.


उनके  निपट  पास   जाकर   हम,  गालों    को   सहलाते..!

ज़ुल्फ़ों  की   ख़ुशबू  से खेल, फिर गुडी-गुडाई  फिल  होते । 

जलते      हैं     भीतर,  काश    हम   भी    मोबाईल   होते..!


(निपट=  पूरी तरह से; नाज़= गर्व) 
(Goody-Gooday feel= गुडी-गुडाई  फिल = मधुर अपनापन का 
अहसास)


अंतरा-३. 


दिनभर  नर्म  हाथों  पर  और  रात  उनके  सिरहनों  पर ।

पास  रखती  तो, अपुन  के  भी  नवाबी   ईस्टाईल  होते..!

जलते     हैं    भीतर,  काश   हम   भी   मोबाईल    होते..!

( style=ईस्टाईल= ढंग, तरीक़ा; सिरहन= तकिये  के  पास)


अंतरा-४.


दिल का  सिम जवान  रहता, प्यार का पावर ऑन  रहता ।

दुःख है मगर, काश कि हम, इश्क के  आईन्स्टाईन  होते..!

जलते     हैं   भीतर,  काश    हम    भी    मोबाईल    होते..!


(दिल का सिम= SIM CARD; आईन्स्टाईन= निष्णात संशोधक)


मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०१-०९-२०१२.


Wednesday, March 20, 2013

राशनकार्ड


`राशनकार्ड`- मुक्त छंद कविता ।


(courtesy-Google images)
 



न जाने बाबू ने राशन कार्ड से, मेरा  नाम  कैसे  मिटा दिया..!!
 

भूखा  था  कल  तक आज भी,पापी पेट को, मैंने समझा दिया ।


देता रहा रिश्वत,निवाला छिन,बच्चों  के मुँह से, भीखमंगों को, 
 

कहाँ से मिल गया,हाज़मा भारी,रिश्वत देकर, दरिंदे नंगों को ।


निगल  गया  हूँ न जाने कितने,ही कंकर - सड़े गेहूँ के साथ,
 

हज़म कर भी पाऊँगा,या लगेंगे न जाने मुझे और कितने साल?


सौ जन्म भी होंगे कम,ढूंढ पाऊँ जो,खुद  को, इन टूटे आईनों में, 
 

बहते आंसु, आहें, बुझी निगाँहें, ताउम्र कटी, इन लंबी लाईनों में ।


छाया है अंधेरा,बिना तेल मिट्टी के,झोंपड़ी और मेरे  ख़्वाब में भी,
 

आखिरी बार हो दर्ज,नाम राशन में, हो जाए रोशन चिता मेरी? 


न जाने बाबू ने राशन कार्ड से, मेरा  नाम कैसे मिटा दिया..!!
 

भूखा था कल तक आज भी, पापी पेट को, मैंने समझा दिया ।
 

मार्कण्ड दवे । दिनांक - ०५ -०४ -२०११.

Monday, March 18, 2013

कमबख़्त मुहब्बत । (गीत)




कमबख़्त  मुहब्बत । (गीत)


http://mktvfilms.blogspot.in/2013/03/blog-post.html
कमबख़्त   मुहब्बत   जवाँ   होने  का   नाम  नहीं  लेती..!

और  एक  वो  है, जो  दिल से   कोई   काम   नहीं   लेती..!


अंतरा-१.


क्या-क्या  नहीं  करते  दिलबर, सनम को  लुभाने  को..!

एक वो  है जो,  हाले दिल  तक खुले आम  नहीं  करती..!

कमबख़्त  मुहब्बत  जवाँ   होने  का   नाम  नहीं  लेती..!

(खुले आम= अभिव्यक्त)  


अंतरा-२.


शरमा  के   यूँ   नज़रें   झुकाना, प्यार  नहीं   तो  क्या  है ?

फिर  वो  तो, नज़रों   को   ज़रा  भी   आराम   नहीं   देती..!

कमबख़्त   मुहब्बत   जवाँ   होने  का   नाम  नहीं   लेती..!


अंतरा-३.


दोस्तों, कोई   करें  भी तो  क्या  करे,  कैसे   माँगे   दिल..!

करारी    शिकस्त  पर  तंगदिल, कोई  इनाम  नहीं  देती ।

कमबख़्त   मुहब्बत   जवाँ    होने  का   नाम  नहीं  लेती..!

(तंगदिल= कंजूस)


अंतरा-४.


थका-थका सा  प्यार, बुझा-बुझा सा  इक़रार  लगता  है..!

अब  तो, सलाम के   बदले  भी, वो  सलाम  नहीं  करती..!

कमबख़्त   मुहब्बत   जवाँ   होने  का   नाम  नहीं  लेती..!


(बुझा-बुझा  सा= रूखा)


मार्कण्ड दवे । दिनांकः०८-०९-२०१२.




Friday, March 15, 2013

HINDI GEET PATHAN- CHAL RE MAN-MARKAND DAVE.



(GOOGLE)


दिल की छत पर टहल कर आते हैं..! (गीत) 



चल    रे    मन     हम,   दिल  की    छत   पर   टहल  कर   आते   हैं..!

प्यार   भरी    सोच     के,    नरम    पापोश     पहन   कर   जाते   हैं..!

( पापोश= जूते)


अंतरा-१.


आदत     है     उसे     कहीं    भी,    दबे     पाँव     धूमने   की   मगर..! 

दबे   पाँव    चल   कर    चल,   हम    उसकी   नकल   कर   आते   हैं..!

चल    रे    मन    हम,   दिल  की    छत   पर   टहल  कर   आते   हैं..!


अंतरा-२.


ओ रे  मन,  कोमल   सतह   पर,  तुम   पाँव  धरना  सँभल  कर..!

चल,  क़दमों  के  निशान  हम भी, अब  सकल   कर   आते   हैं..!

चल  रे  मन  हम, दिल  की    छत   पर   टहल  कर   आते   हैं..!


(निशान  सकल   करना= कोने-कोने में छाप छोड़ना)  


अंतरा-३.


भोलेभाले    दिल  से,   सयाने   मन   का    मुक़ाबला   ही   क्या ?

चल,   उसके   भोलेपन   का,  आज  हम  अदल   कर   आते   हैं..!

चल  रे  मन   हम, दिल  की    छत   पर   टहल  कर   आते   हैं..!


(सयाना= चालाक; अदल= इन्साफ,न्याय )


अंतरा-४.


दहशत  है,  छत  पर  कहीं,  दर्द   कि   परतें   न  जम   गई   हो..!

गर      दर्द     है     भी     तो,   एतबारी    सफ़ल   कर   आते   हैं..!

चल  रे  मन   हम,  दिल  की    छत   पर   टहल  कर   आते   हैं..!


( एतबारी  सफ़ल  करना= किसी पर  विश्वसनीयता  कायम  रखना)


मार्कण्ड दवे । दिनांकः १९-०९-२०१२.





Monday, March 4, 2013

Friday, March 1, 2013

JOOM JOOM DHALTI RAAT-RINGTONE.



JOOM JOOM DHALTI RAAT-RINGTONE

KOHRAA FILM SONG`S RINGTONE  `JOOM JOOM DHALTI RAAT` ON MY HAWAIIAN GUITAR.

ENJOY.

MARKAND DAVE.

DOWNLOAD RINGTONE HERE - http://www.zedge.net/ringtone/1593604/


http://www.youtube.com/watch?v=TfN_Hl5wwR4



Tuesday, February 26, 2013

ERI SAKHI MORE PIYA GHAR AYE- RINGTONE,mp4






DOWNLOAD RINGTONE HERE-  http://www.zedge.net/ringtone/1592591/



ENJOY THUMARI, `ERI  SAKHI MORE PIYA GHAR AYE`- RINGTONE

ON

MY HAWAIIAN GUITAR. --

MARKAND DAVE

AHMEDABAD.