पुराने ज़माने की यादगार पलों को ज़िंदा करनेवाली,किसी कला कृति के समान हिन्दी फिल्में, आजकल के वर्षो में, सिर्फ गिनी चुनी संख्या में ही फिल्में निर्माण होती है । ऐसे में उसके अल्पकालीन गीत-संगीत के बारे में तो क्या कहें?
फिल्मी-गीत-संगीत की पायरसी जैसी कई समस्याओं से निज़ात पाने के लिए संघर्ष कर रहे, फिल्म निर्माण के साथ जुड़े हुए सारे लोगों को ढेर सारी मजबूरीओं के कारण, `आज फिल्म बनायी-आज ही कर ली कमाई` जैसी वायु की गति से फिल्म निर्माण करने की जब नौबत आ गई हो तब, पैसों के पिछे पागल हुए इन सारे कलाकारों के पास, सर्वोत्तम फिल्मों की आशा रखना, ये बात सेहरा में, दो बूँद पानी ढूंढने जैसी मुश्किल सी लगती है ।
फिल्मी-गीत-संगीत की पायरसी जैसी कई समस्याओं से निज़ात पाने के लिए संघर्ष कर रहे, फिल्म निर्माण के साथ जुड़े हुए सारे लोगों को ढेर सारी मजबूरीओं के कारण, `आज फिल्म बनायी-आज ही कर ली कमाई` जैसी वायु की गति से फिल्म निर्माण करने की जब नौबत आ गई हो तब, पैसों के पिछे पागल हुए इन सारे कलाकारों के पास, सर्वोत्तम फिल्मों की आशा रखना, ये बात सेहरा में, दो बूँद पानी ढूंढने जैसी मुश्किल सी लगती है ।
हालाँकि, इन सारे लोगों के साथ न्याय करते हुए, हमें इतना ज़रूर कहना चाहिए कि, पुरानी क्लासिक फिल्मों की याद दिलाने वाली, बेनिमून नयी क्लासिक फिल्मों का निर्माण कभी-कभार होता तो है, पर ऐसी नयी फिल्मों का बॉक्स ऑफ़िस पर कैसा बुरा हाल होता है, ये बात सभी को अच्छी तरह ज्ञात है..!!
पहले फिल्मों में प्रेमालाप के दृश्य ऐसे कलात्मक और वास्तविक तरीके से फ़िल्माये जाते थे कि, पुराने समय के सारे प्रेमी-प्रेमिकाएं, उन नायक-नायिका की नकल करते हुए, अपनी प्रेम भावना का इज़हार करने के लिए, एक दूजे के प्रेम पत्र में उन फिल्मों के गीत के बोल का उपयोग किया करते थे । इतना ही नहीं, उस समय फिल्म को कला और पूजा का माध्यम समझ कर, धैर्य और पूर्ण समर्पण भाव से, साधना की भाँति फिल्में निर्माण की जाती थी । (आजकल फिल्में हड़बड़ी में सिर्फ बनायी जाती हैं?)
मुझे याद है, वास्तविक जीवन में, पहले कई नाकाम प्रेमी-प्रेमिका, मध्य वयस्क होने तक, केवल क्षण भर के नयन के मिलन मात्र से, संतोष पाकर, सारा जीवन, प्रेम की यादों के सहारे बिता देते थे..!! इसीलिए शायद किसी कवि ने ठीक ही कहा है, "प्रेम भूख से नहीं, कब्ज से मरता है ।"
पर, आजकल के नायक-नायिका की नकल करने वाले प्रेमीओं को, ये सनातन सत्य जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि,"अति सर्वत्र वर्जयेत ।"
आइए, आज इस कथन के समर्थन में, एक ऐसी फिल्मी गज़ल का रसास्वाद करें, जिस के बोल, आज भी सभी संगीत प्रेमी के दिल के बहुत करीब है..!!
फिल्म का नाम है - नौनिहाल ।
गीत कार - कैफ़ी आज़मी साहब ।
संगीतकार- मदनमोहन जी ।
गायक - मोहम्मद रफीसाहब ।
गज़ल के बोल है -"तुम्हारी ज़ुल्फ के साये में शाम कर लूँगा...,"
गज़ल की जाति- संपूर्ण । (सा,रे गा,मा,पा,धा शुद्ध है जब की निषाद शुद्ध और कोमल दोनों का प्रयोग किया गया है ।
ताल- दादरा ।
दोस्तों, इस गज़ल में संगीत के चाहकों का, एक सरल मगर मन मोहक बोल की ओर ध्यान आकर्षित करने का मन करता है ।
संगीत के मर्मज्ञ जानते हैं कि,गीत-गज़ल के आखिरी स्वर को,"LANDING NOTE" कहते हैं, इस गज़ल में हर एक अंतरा के अंत में, श्रीरफीसाहब ने,"LANDING NOTE-लूँगा" शब्द पर गायकी की अलग-अलग अदा (भाव गायकी) दर्शायी है, जिसे वर्णन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है, वैसे भी इसे सिर्फ गज़ल सुनते समय ही महसूस किया जाता है । कृपया आप भी "लूँगा" शब्द पर ध्यान दें, आप को भी गज़ल की हर एक लाइन में अलग-अलग प्रकार से की गई, भाव गायकी का प्रमाण मिल जाएगा ।
पहले फिल्मों में प्रेमालाप के दृश्य ऐसे कलात्मक और वास्तविक तरीके से फ़िल्माये जाते थे कि, पुराने समय के सारे प्रेमी-प्रेमिकाएं, उन नायक-नायिका की नकल करते हुए, अपनी प्रेम भावना का इज़हार करने के लिए, एक दूजे के प्रेम पत्र में उन फिल्मों के गीत के बोल का उपयोग किया करते थे । इतना ही नहीं, उस समय फिल्म को कला और पूजा का माध्यम समझ कर, धैर्य और पूर्ण समर्पण भाव से, साधना की भाँति फिल्में निर्माण की जाती थी । (आजकल फिल्में हड़बड़ी में सिर्फ बनायी जाती हैं?)
मुझे याद है, वास्तविक जीवन में, पहले कई नाकाम प्रेमी-प्रेमिका, मध्य वयस्क होने तक, केवल क्षण भर के नयन के मिलन मात्र से, संतोष पाकर, सारा जीवन, प्रेम की यादों के सहारे बिता देते थे..!! इसीलिए शायद किसी कवि ने ठीक ही कहा है, "प्रेम भूख से नहीं, कब्ज से मरता है ।"
पर, आजकल के नायक-नायिका की नकल करने वाले प्रेमीओं को, ये सनातन सत्य जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि,"अति सर्वत्र वर्जयेत ।"
आइए, आज इस कथन के समर्थन में, एक ऐसी फिल्मी गज़ल का रसास्वाद करें, जिस के बोल, आज भी सभी संगीत प्रेमी के दिल के बहुत करीब है..!!
फिल्म का नाम है - नौनिहाल ।
गीत कार - कैफ़ी आज़मी साहब ।
संगीतकार- मदनमोहन जी ।
गायक - मोहम्मद रफीसाहब ।
गज़ल के बोल है -"तुम्हारी ज़ुल्फ के साये में शाम कर लूँगा...,"
गज़ल की जाति- संपूर्ण । (सा,रे गा,मा,पा,धा शुद्ध है जब की निषाद शुद्ध और कोमल दोनों का प्रयोग किया गया है ।
ताल- दादरा ।
दोस्तों, इस गज़ल में संगीत के चाहकों का, एक सरल मगर मन मोहक बोल की ओर ध्यान आकर्षित करने का मन करता है ।
संगीत के मर्मज्ञ जानते हैं कि,गीत-गज़ल के आखिरी स्वर को,"LANDING NOTE" कहते हैं, इस गज़ल में हर एक अंतरा के अंत में, श्रीरफीसाहब ने,"LANDING NOTE-लूँगा" शब्द पर गायकी की अलग-अलग अदा (भाव गायकी) दर्शायी है, जिसे वर्णन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है, वैसे भी इसे सिर्फ गज़ल सुनते समय ही महसूस किया जाता है । कृपया आप भी "लूँगा" शब्द पर ध्यान दें, आप को भी गज़ल की हर एक लाइन में अलग-अलग प्रकार से की गई, भाव गायकी का प्रमाण मिल जाएगा ।
१. ज़ुल्फ- बालों की लट ।
२. साया - आश्रय ।
३. तमाम- पूर्ण ।
४. अंजाम- आखिरी फैसला ।
५. जहाने दिल- दिल की सल्तनत ।
६. हुकूमत- मालिकाना हक़ जताना ।
७. शिक़स्त- पराजय ।
तुम्हारी ज़ुल्फ के साये में शाम कर लूँगा ।
सफ़र इस उम्र का पल में तमाम कर लूँगा ।
दोस्तों, जब कोई प्रीतम अपनी प्रिया को उसकी बाहों में लेकर, प्रिया की ज़ूल्फों की मंद-मंद सुगंध को, अपने मन के भीतर स्थापित कर लेता है, तब आजीवन इसका नशा कम नहीं होता ।
उस समय प्रीतम ने अपनी बाहों मे, किसी प्रिया को नहीं, परंतु ज़िंदगी की सारी सफर को अपनी आगोश में समेट ली हो ऐसी अनुभूति प्रीतम को होती है ।
१. नज़र मिलाई तो पूछूँगा इश्क़ का अंजाम ।
नज़र झुकाई तो ख़ाली सलाम कर लूँगा ।
प्यार का नशा दोनों ओर होता है, इसलिए, सर्वांग समर्पण भाव से, मदहोशी की अवस्था में, प्रीतम और प्रिया की नज़र एक होते ही, उभय के प्रेम के अंजाम के बारे में बिना कुछ कहे-सुने, नज़रों से ही कोई एक दूजे को सवाल करें तब ऐसे इशारे का मर्म पकड़ कर प्रीतम कहता है,
" तुम जो नज़र झुका कर, अगर तेरी कोई मजबूरी ज़ाहिर करेगी तो मैं कोई कारण जानने की कोशिश किए बिना ही, तुझे अलविदा कह कर, तेरी ज़िंदगी से कहीं दूर चला जाउँगा ।
२.जहाने दिल पे हुकूमत तुम्हें मुबारक हो ।
रही शिक़स्त तो वो अपने नाम कर लूँगा ।
मेरे हृदय की संवेदनाओं के साम्राज्य पर, तेरा मालिकाना हक़ अबाधित और अखंड रखते हुए, हमारे नाकाम प्यार के कारण, दुनिया में कहीं पर भी तेरी बदनामी न हो इसलिए, हमारे प्यार की नाकामी का इल्ज़ाम मैं अपने सर ले लूँगा ।
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प्यारे दोस्तों, वैसे तो प्रेम तत्व क्या है?
प्रेम का मतलब, हृदय में प्रकट होती एक ऐसी अनुभूति, जो किसी प्रेमी जन के अंतिम सांस लेते समय भी, ईश्वर के बदले अपने प्रेमी जन की छवि को, उसकी नज़र के सामने जीवंत करें..!!
आपको मेरा यह प्रयास कैसा लगा?आप के विचारों का,सच्चे दिल से स्वागत है ।
मार्कण्ड दवे । दिनांक-०८-०६-२०११
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